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Book 3

चिुयुवग में सियुग, िेिा, द्र्ापर और कमलयुग होिे हैं | चिुयुवग के दसर्ें भाग का चार गुना सियुग (४०%), िीन गुना (३०%) िेिायुग, दोगुना (२०%) द्र्ापर युग और एक गुना (१०%) कमलयुग होिा है | अथावि १ चिुयुवग (महायुग) = ४३२०००० सौर र्षव १ कमलयुग = ४३२००० सौर र्षव १ द्र्ापर युग = ८६४६०० सौर र्षव १ िेिा युग = १२९६००० सौर र्षव १ सियुग = १७२८००० सौर र्षव िैसे एक अहोराि में प्रािः और सांय दो संध्या होिी हैं उसी प्रकार प्रत्येक युग के आहद में िो संध्या होिी है उसे आहद संध्या और अंि में िो संध्या आिी है उसे संध्यांश कहिे हैं | प्रत्येक युग की दोनों संध्याएूँ उसके छठे भाग के बराबर होिी हैं इसमलए एक संध्या (संचध काल ) बारहर्ें भाग के सामान हुई | इसका िात्पयव यह हुआ कक कमलयुग की आहद र्् अंि संध्या = ३६०० सौर र्षव र्षव द्र्ापर की आहद र्् अंि संध्या = ७२००० सौर र्षव िेिा युग की आहद र् अंि संध्या = १०८००० सौर र्षव सियुग की आहद र् अंि संध्या = १४४००० सौर र्षव अब और आगे बढ़िे हैं | ७१ चिुयुवगों का एक मन्र्ंिर होिा है, जिसके अंि में सियुग के समान संध्या होिी है | इसी संध्या में िल्लर्् होिा है | संचध सहहि १४ मन्र्न्िरों का एक कल्प होिा है, जिसके आहद में भी सियुग के सामान एक संध्या होिी है, इसमलए एक कल्प में १४ मन्र्ंिर और १५ सियुग के सामान संध्या हुई | अथावि १ चिुयुवग में २ संध्या १ मन्र्ंिर = ७१ x ४३२०००० = ३०६७२०००० सौर र्षव मन्र्ंिर के अंि की संध्या = सियुग की अर्चध = १७२८००० सौर र्षव

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