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Book 3

अध्याय २ योिनातन शिान्यष्टो भूकिों द्वर्गुिातन िु | िद्र्गविो दशगुिात्पदे भूपररचधभवर्िे || अथावि पृ्र्ी का व्यास ८०० के दूने १६०० योिन है, इसके र्गव का १० गुना करके गुिनिल का र्गवमूल तनकालने से िो आिा है, र्ह पृ्र्ी कक पररचध है | इस श्लोक को वर्स्िार से आगे चचाव करेंगे ककन्िु इस श्लोक से स्पष्ट हो गया होगा कक इस अध्याय में हम खगोल की और पृ्र्ी के बारे में वर्स्िार से अध्ययन करेंगे | आइये, कु छ पररभाषाएं और कु छ महत्र्पूिव ि्य पढ़िे हैं, िाकक ज्योतिष में आगे प्रयुति वर्मभन्न शब्दार्ली समझने में आसानी रहे | यहाूँ किर स्पष्ट करूूँ गा कक हमारा संकल्प ज्योतिष को सम्पपूिव रूप से समझने का है और हम इसमें ककसी भी प्रकार के आलस्य का साधन नहीं करेंगे | सौर मंडल – सौर मंडल में ९ िहों में अरूि िह (यूरेनस), र्रुि िह (नेपच्यून) और यम (्लूटो) को प्राचीन ज्योतिष में नहीं चगना गया है (ऐसा माना गया है कक इनसे आिी हुई ककरिें मनुष्य िीर्न को बहुि प्रभावर्ि नहीं करिे या इनका प्रभार् नगण्डय है | ) चंद्रमा और दो छाया िह जिन्हें राहु, के िु माना गया है | राहु और के िु र्ास्िर् में कोई र्ास्िवर्क िह नहीं है बजल्क गणििीय गिनाओं से आई सूयव और चंद्रमा कक कक्षाओं के ममलान त्रबंदु हैं | शुक् और बुध, पृ्र्ी और सूयव के मध्य आिे हैं अिः इन्हें “आिंररक िह” (Inner Planets or Inferior Plantes) कहा िािा है | मंगल, गुरु और शतन पृ्र्ी की कक्षाओं से बाहर की िरि आकाश में जस्थि हैं अिः इन्हें “बाहरी िह” (Outer Palnets or Superior Planets) कहिे हैं | पृ्र्ी अपने अक्ष पर और सूयव के चारों ओर लगािार घूमिी है | इसकी गति ३० ककमी/सेकं ड या १६०० ककमी/ममनट या ९६६०००००० ककमी/र्षव है | पृ्र्ी अपने अक्ष से २३.५० झुकी हुई है | धरिी अपने अक्ष पर इस प्रकार झुकी हुई है जिससे कक इसका उत्िरी मसरा हमेशा उत्िरी ध्रुर् िारे के सामने रहिा है | िहाूँ पर पृ्र्ी के अक्ष के उत्िरी और दक्षक्षिी मसरे पृ्र्ी की सिह पर ममलिे हैं, उनको ही उत्िरी ध्रुर् और दक्षक्षिी ध्रुर् कहा िािा है |

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