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Book 3

अध्याय ३ अब हम थोडा और आगे बढ़ेंगे | िैसे िैसे हम आगे बढ़िे हैं, र्ैसे र्ैसे हमारा र्ास्िा पंचांग और कै लेंडर से पड़िा िायेगा | अिः हमें पंचांग के भी कु छ अंगों से प्रत्यक्ष होना पड़ेगा | पंचांग में तिचथ, र्ार, नक्षि, योग िथा करि, ये पांच अंग होिे हैं इसीमलए इसे पंचांग कहा िािा है | हम इसमें से कु छ को पहले बिा चुके हैं, िैसे र्ार कै से आिे हैं ? तिचथ तया होिी है ? अब उस से आगे बढ़िे हैं | तिथथ - चन्द्रमा की एक कला को एक तिचथ माना गया है | अमार्स्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूणिवमा िक की तिचथयाूँ शुतलपक्ष और पूणिवमा से अमार्स्या िक की तिचथयाूँ कृ ष्ि पक्ष कहलािी हैं | अमावस्त्या - अमार्स्या िीन प्रकार की होिी है | मसनीर्ाली, दशव और कु हू | प्रािःकाल से लेकर रात्रि िक रहने र्ाली अमार्स्या को मसनीर्ाली, चिुदवशी से त्रबद्ध को दशव एर्ं प्रतिपदा से युति अमार्स्या को कु हू कहिे हैं | तिथथयों की संज्ञाएाँ - 1|6|11 नंदा, 2|7|12 भद्रा, 3|8|13 िया, 4|9|14 ररतिा और 5|10|15 पूिाव िथा 4|6|8|9|12|14 तिचथयाूँ पक्षरंध्र संज्ञक हैं | नन्दा भद्रा िया ररतिा पूिाव १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५, ३० नन्दा तिथथयााँ - दोनों पक्षों की प्रतिपदा, षष्ठी र् एकादशी (१,६,११) नन्दा तिचथयाूँ कहलािी हैं | प्रथम गंडाि काल अथावि अंतिम प्रथम घटी या २४ ममनट को छोड़कर सभी मंगल कायों के मलए शुभ माना िािा है | भरा तिथथयााँ - दोनों पक्षों की द्वर्िीया, स्िमी र् द्र्ादशी (२,७,१२) भद्रा तिचथ होिी है | व्रि, िाप, िप, दान-पुण्डय िैसे धाममवक कायों के मलए शुभ हैं | जया तिथथ - दोनों पक्षों की िृिीया, अष्टमी र् ियोदशी (३,८,१३) िया तिचथ मानी गयी है | गायन, र्ादन आहद िैसे कलात्मक कायव ककये िा सकिे हैं | ररक्िा तिथथ - दोनों पक्षों की चिुथी, नर्मी र् चिुदवशी (४,९,१४) ररति तिचथयाूँ होिी है | िीथव यािायें, मेले आहद कायों के मलए ठीक होिी हैं |

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