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Book 3

चचि – १४ भ – पृ्र्ी का कें द्र र्भ – वर्षुर्िीय त्रिज्या उ – उत्िरी ध्रुर् या सुमेरू स, सा – एक ही उत्िर दक्षक्षि रेखा (Meridian) के दो स्थान स का अक्षांश = ∆ र्भस सा का अक्षांश = ∆ र्भसा दोनों के अक्षांशों का अंिर = ∆ सभसा किर अनुपाि तनकालें िो ∆ सभसा : ३६०० :: ससा : भूपररचध अिः भूपररचध = (३६०० x ससा)/ ∆सभसा भूपररचध इसी रीति से आि भी तनकाली िािी है; के र्ल सूक्ष्म यंिों के कारि अब अचधक शुद्धिा पूर्वक यह काम ककया िािा है | अब पृ्र्ी कक पररकल्पना के मलए हमारे मसद्धांिों में ऐसा र्ृत्ि मलया गया है, जिसकी त्रिज्या ३४३८ इकाइयाूँ और पररचध २१६०० इकाइयाूँ होिी है जिसमें १-१ इकाई एक एक कला के बराबर होिी है | तयोंकक पररचध एक चक् के सामान होिी है जिसमें ३६०० अथर्ा ३६०x६० = २१६०० कलाएं होिी है | त्रिज्या का मान ३४३८ इसमलए मलया गया है कक िब पररचध कलाओं में वर्भाजिि की िािी है िब त्रिज्या का मान ३४३७(३/४) कला आि कल कक सूक्ष्म गिना से ठहरिा है जिसका तनकटिम पूिाांक ३४३८ है | आिकल के १ रेडडयन में जििनी कलाएं होिी है उिनी ही पूिव कलाओं के सामान त्रिज्या का पररमाि माना गया है | १ रेडडयन = ५७० .२९५८ = ३४६७.७४८ कला

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