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Book 3

वर्परीि युति – युति और वर्परीि युति बाह्य िहों की ही होिी है | इस समय सूयव और िह के अंशों का अंिर १८०० (६ रामश) होिा है अथावि बाह्य िह और सूयव के मध्य पृ्र्ी होिी है | संयुति काल – कोई िह एक प्रकार की युति से चतकर (अंियुविी, बहहयुविी या वर्परीि युति) पुनः उसी प्रकार की युति िक आने में जििना समय लेिा है र्ह उस िह का संयुति काल कहलािा है | अब हम किर से उस श्लोक की चचाव करेंगे िहाूँ से हमने ये अध्याय प्रारंभ ककया था | योिनातन शिान्यष्टो भूकिों द्वर्गुिातन िु | िद्र्गविो दशगुिात्पदे भूपररचधभवर्िे || अथावि पृ्र्ी का व्यास ८०० के दूने १६०० योिन है, इसके र्गव का १० गुना करके गुिनिल का र्गवमूल तनकालने से िो आिा है, र्ह पृ्र्ी कक पररचध है | यहद पृ्र्ी का व्यास ‘र्’ मान मलया िाए िो इसकी पररचध = √र्२ x१० = र्√१० = र्x३.१६२३, जिससे मसद्ध होिा है कक पररचध व्यास का ३.१६२३ गुना होिी है | आि कल यह सम्पबन्ध ३.१४१६ दशमलर् के चार स्थानों िक शुद्ध समझा िािा है िो ३.१६२३ से बहुि मभन्न है परन्िु इस से ये नहीं समझना चाहहए कक सूयवमसद्धांिकार को व्यास और पररचध का ठीक ठीक सम्पबन्ध नहीं मालूम था; तयोंकक दूसरे अध्याय में (सूयव मसद्धांि के ) अधवव्यास और पररचध के अनुपाि ३४३८:२१६०० माना गया है जिससे पररचध व्यास का ३.१४१३६ गुना ठहरिी है | इसमलए इस श्लोक में पररचध को व्यास का √१०, सुवर्धा के मलए, गणिि की कक्या को संक्षेप करने के मलए माना गया है | िैसे आि कल िब स्थूल रीति से काम लेना होिा है िो कोई इसको २२/७ और कोई इसे ३.१४ मानिे हैं और िहाूँ बहुि सूक्ष्म गिना करने कक आर्श्यकिा होिी है र्हां इसको दशमलर् के पांच पांच, साि साि स्थानों िक शुद्ध करना पड़िा है | अब प्रश्न यह रह गया कक भूपररचध नापी कै से गयी ? भास्कराचायव गोलाध्याय भुर्नकोष के १३ र्ें पृष्ठ के १४ र्ें श्लोक में बिािे हैं कक उत्िर दक्षक्षि रेखा पर जस्थि दो स्थानों की दूरी योिनो में नाप लो | उन दो स्थानों के अक्षांशो का भी अंिर तनकाल लो | किर िैरामशक द्र्ारा यह िान लेना चाहहए कक िब इिने अक्षांशो में अंिर होने से दो स्थानों कक दूरी इिने योिन होिी है िब ३६०० पर तया होगी | इसकी उपपजत्ि इस प्रकार है –

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