१. द्ध संज्ञक नक्षर - रवर्र्ार को भरिी, सोमर्ार को चचिा, मंगल को उत्िराषाढ, बुधर्ार को धतनष्ठा, बृहस्पतिर्ार को उत्िरािाल्गुनी, शुक् को ज्येष्ठा एर्ं शतन को रेर्िी दग्ध संज्ञक हैं | इन नक्षिों में शुभ कायव करना र्जिवि है | नक्षिों को भी दो प्रकार का कहा गया है | अ - ददन नक्षर - प्रतिहदन चंद्रमा जिस नक्षि में रहिा है र्ह हदन नक्षि है | ब - सूयि नक्षर - जिस नक्षि पर सूयव हो र्ह सूयव नक्षि है | इसी प्रकार कोई िह जिस नक्षि पर हो, र्ह उस िह का नक्षि होिा है | नक्षर भाव वृवद्ध - िो नक्षि ६० घडी पूिव होकर दूरे हदन चला िाए और दुसरे हदन का स्पशव हो िाए अथावि घहटकाओं में िो नक्षि पड़िा है उसे भार्र्ृवद्ध कहिे हैं | योग - कु ल ममला कर २७ योग होिे हैं | िैसे कक अजश्र्नी नक्षि के आरम्पभ से सूयव और चंद्रमा दोनों ममल कर ८०० कलाएं आगे चल चुकिे हैं िब एक योग बीििा है, िब १६०० कलाएं आगे चलिे हैं िब २, इसी प्रकार िब दोनों १२ रामशयों - २१६०० कलाएं अजश्र्नी से आगे चल चुकिे हैं िब २७ योग बीििे हैं | सूयव और चंद्रमा के स्पष्ट स्थानों को िोड़ कर िथा कलाएं बना कर ८०० का भाग देने पर गि योगों की संख्या तनकल आिी है | शेष से यह अर्गि ककया िािा है कक र्िवमान योग की ककिनी कलाएं बीि गयी हैं | शेष को ८०० में से घटाने पर र्िवमान योग की गम्पय कलाएं आिी हैं | इन गि या गम्पय कलाओं को ६० से गुना कर के सूयव और चंद्रमा की स्पष्ट दैतनक गति के योग से भाग देने पर र्िवमान योग की गि और गम्पय घतिकाएं आिी हैं | २७ योगों के नाम इस प्रकार हैं | `१. वर्ष्कम्पभ २. प्रीति ३. आयुष्मान ४. सौभाग्य ५. शोभन ६. अतिगंड ७. सुकमाव ८. धृति ९. शूल १०. गंड ११. र्ृवद्ध १२. ध्रुर् १३. व्याघाि १४. हषवि १५. र्ज्र १६. मसवद्ध १७. व्यतिपाि १८. र्रीयन १९. पररघ २०. मशर् २१. मसद्ध २२. साध्य २३. शुभ २४. शुतल २५. ब्रह्म २६. एन्द्र २७. र्ैधृति योगों के स्त्वामी -